Question 1:
'हारेंहु खेल जितावहिं मोही' भरत के इस कथन का क्या आशय है ?
Answer:
इस कथन के माध्यम से भरत यह कहना चाहते हैं कि राम का उनके प्रति विशेष स्नेह रहा है। इसलिए बचपन में खेलते हुए जब भी वे कभी किसी खेल में हारने लगते थे, तो राम उन्हें जिता देते थे तथा स्वयं हार जाते थे। राम सदा अपने से छोटों का उत्साहवर्धन करते रहे हैं। वे अपने बड़े होने का लाभ नहीं उठाते थे। वे अपने छोटे भाइयों का बहुत ध्यान रखते थे। उन्हें प्रसन्न देखने के लिए वे स्वयं जान-बूझकर हार जाते थे तथा छोटे भाइयों को जिता देते थे।
Question 2:
'मैं जानउँ निज नाथ सुभाउ' में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है ?
Answer:
इस कथन के माध्यम से राम के स्वभाव में सबके प्रति प्रेम, दया, ममता, करुणा आदि भावों की ओर संकेत किया गया है। राम का स्वभाव ऐसा है कि वे तो कभी अपराधी पर भी क्रोध नहीं करते हैं। अपने छोटे भाइयों के प्रति उन्हें विशेष प्रेम है। वे स्वयं हारकर अपने भाइयों को जिता देते हैं। वे कभी भी किसी के मन को नहीं दुखाते और न ही किसी के मन के प्रतिकूल कार्य करते हैं। वे खेल में भी कभी अप्रसन्न नहीं होते।
Question 3:
भरत का आत्म-परिताप उनके चरित्र के किस उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है?
अथवा
भरत के परिताप का कारण क्या था और कैसे कहा जा सकता है कि वह परिताय भरत के चरित्र के उज्ज्वल पक्ष को
प्रस्तुत करता है?Answer:
भरत का आत्म-परिताप उनके चरित्र के इस उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है कि भरत सच्चे हैं। राम को वनवास दिलाने में उनका कोई हाथ नहीं है। उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि राम को वनवास दिया गया है। उन दिनों वे अपने ननिहाल गए हुए थे। अयोध्या आने पर जैसे ही उन्हें राम के वनवास का पता चला वे उन्हें लौटा लाने के लिए चित्रकूट आ जाते हैं। वे स्वयं को अत्यंत अभागा मानते हैं जो उनके कारण राम को वनवास हुआ। वे राम को अपना स्वामी तथा स्वयं को उनका सेवक कहते हैं। वे सत्यनिष्ठ तथा भ्रातृ-प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
Question 4:
राम के प्रति अपने श्रद्धा भाव अथवा प्रेम को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
Answer:
भरत राम को अपना स्वामी मानते हैं। बचपन से ही राम की उन पर विशेष कृपा रही है। वे राम के सम्मुख कभी भी मुँह नहीं खोलते हैं। उनके राम के प्रति अनन्य प्रेम को अंतर्यामी श्रीराम ही जानते हैं। वे श्रीराम की कृपा को अपने अंतर्मन से जानते हैं। वे सदा अपने स्वामी श्रीराम के दर्शन करते रहना चाहते हैं, क्योंकि उनके दर्शन करने से उनके नेत्र कभी भी तृप्त नहीं होते। वे सदा श्रीराम के चरणों की सेवा में लगे रहना चाहते हैं।
Question 5:
'महीं सकल अनरथ कर मूला' पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
Answer:
इस पंक्ति के माध्यम से भरत की इन भावनाओं का ज्ञान होता है कि वे राम से अनन्य प्रेम करते थे, इसलिए उन्हें राम को वनवास दिया जाना ठीक नहीं लगता। राम को वनवास दिए जाने का मूल कारण वे अपनी माता का उसके प्रति अंधा प्रेम मानते हैं। इसके लिए वे अपनी माता को बुरा-भला भी कहते हैं, किंतु बाद में उन्हें लगता है कि इसमें माता का भी कोई दोष नहीं है। यह तो उनका ही दुर्भाग्य है जो उनके कारण राम को वनवास मिला है। उन्हें यह सब अपने पापों का परिणाम ही लगता है। अपनी इस भूल का प्रायश्चित करने का उन्हें कोई साधन भी नहीं दिखाई देता है। उन्हें केवल अपने स्वामी श्रीराम पर ही भरोसा है कि वे ही उसका कल्याण करेंगे।
Question 6:
'फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली।' पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
Answer:
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जिस प्रकार से कोदों से धान की अच्छी फ़सल की आशा नहीं की जा सकती और काली घोंघी में मोती जन्म नहीं ले सकता, उसी प्रकार से बुरी विचारों वाली स्त्री की संतान भी अच्छी नहीं हो सकती है। इस प्रकार भरत स्वयं को कैकेयी की बुरी संतान बताकर आत्म परिताप करते हैं। भाषा अवधी है। चौपाई छंद है।
Question 7:
राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देख कर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
अथवा
गीतावली के पद 'जननी निरखति बान धनुहियाँ' के आधार पर राम के वन-गमन के पश्चात् माँ कौशल्या की मन:स्थिति का वर्णन कीजिए।
Answer:
राम के वन चले जाने के बाद राजा दशरथ की भी मृत्यु हो जाती है। ऐसे में माता कौशल्या बहुत व्यथित रहने लगती हैं। घर में जहाँ-कहीं भी उन्हें राम की बचपन की कोई वस्तु दिखाई देती है, उन्हें राम की याद सताने लगती है। वे राम के बचपन के दिनों के खेलने वाले धनुष-बाण को देखकर उठा लेती हैं और बार-बार राम को याद करते हुए उन्हें अपने हृदय और नेत्रों से लगाती हैं। इसी प्रकार से बालक राम के नन्हें-नन्हें पैरों की सुंदर जूतियाँ देखकर भी उनका हृदय उमड़ पड़ता है और उन्हें भी वे अपने हृदय और नेत्रों से लगाती हैं।
Question 8:
'रहि चकि चित्रलिखी सी' पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कौशल्या की व्याकुलता का चित्रण कीजिए।
Answer:
कौशल्या माता राम के वनगमन से संतप्त होकर उनके बचपन की वस्तुओं को देखकर और ज्यादा व्याकुल हो रही हैं। वे कभी राम को जगाने और कभी अपने पिता और भाइयों के साथ मनपसंद भोजन करने की बात कहती हैं तभी अचानक उन्हें याद आ जाता है कि राम तो बन गए हैं। इतना स्मरण करते ही वे चकित हो जाती हैं कि वे किससे बातें कर रही थीं और चित्रलिखित-सी हो जाती हैं। वे समझ नहीं पातीं कि उन्हें क्या हो गया है, जो राम यहाँ न होते हुए भी राम से बातें कर रही हैं। वे उन्मादिनी-सी हो जाती हैं।
Question 9:
गीतावली से संकलित पद 'राघौ एक बार फिरि आवौ' में निहित करुणा और संदेश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
Answer:
प्रस्तुत पद में कवि ने राम के वियोग में संतप्त माता कौशल्या की दयनीय दशा का परोक्ष वर्णन किया है। माता कौशल्या राम को अपनी विरहावस्था का वर्णन न सुनाकर पथिक के माध्यम से उनके पास यह संदेश पहुँचाती हैं कि उनके वियोग में उनके पाले हुए घोड़े दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होते जा रहे हैं। इसलिए एक बार अवश्य लौटकर अयोध्या आओ और अपने प्रिय घोड़ो को देखकर वापस चले जाना। इस प्रकार यदि राम अयोध्या आएँगे तो माता कौशल्या भी उन्हें देख सकेंगी।
Question 10:
(क) उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए।
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है ? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
Answer:
(क) उपमा अलंकार—
(i) कबहूँ समुझि वन-गमन राम को चकि चित्रलिखी-सी।
(ii) तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी-सी।
(ख) 'तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे, मनहु कमन हिम-मारे' में उत्प्रेक्षा अलंकार है, क्योंकि यहाँ घोड़ों के दुर्बल होने में कमल पर पाला गिरने की संभावना की गई है।
Question 11:
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था।
Answer:
तुलसीदास अपने समय में प्रचलित अवधी और ब्रजभाषा के प्रकांड विद्वान थे। उन्हें संस्कृत भाषा का
भी पूर्ण ज्ञान था, इसलिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भाषा उनके भावों का अनुसरण करती
थी। पाठ्यक्रम में निर्धारित दोनों पदों में भी कवि का भाषा पर पूर्ण अधिकार दिखाई देता है।
पुत्र के वियोग में संतप्त माता जब अपने पुत्र के बचपन की वस्तुओं को देखती है तो उसकी
स्नेहधारा स्वयं ही प्रवाहित होने लगती है। यह भाव कवि ने इन पंक्तियों में व्यक्त किए हैं—
जननी निरखति बान-धनुहियाँ।
बार-बार उर नैननि लावति प्रभुजू की ललित पनहियाँ।'
कवि यदि 'धनुहियाँ' के स्थान पर 'धनुष' शब्द का प्रयोग करता तो वह चमत्कार नहीं उत्पन्न हो
सकता था जो अब हुआ है।
इसी प्रकार से राम के वनगमन का स्मरण आते ही माता कौशल्या का यह शब्द-चित्र अनूठा ही बना
पाया है—
'कबहूँ समुझि वन-गमन राम को रहि चकि चित्रलिखी-सी।'
इस प्रकार स्पष्ट है कि तुलसीदास का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। वे अपनी भावनाओं के अनुरूप
शब्द-चयन करने में निपुण थे।
Question 12:
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं, उन्हें छाँटकर लिखिए।
Answer:
(i) ए बर बाजि बिलोकि आपने
(ii) बहुरो बनहि सिधावौ।
(iii) कबहूँ कहति यों, बड़ी बार भइ,
(iv) बंधु बोलि जेंइय जो भावै,