NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 16 - यथास्मै रोचते विश्वम् नहीं

Question 1:

लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से क्यों की है?

Answer:

लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से इसलिए की है क्योंकि जिस प्रकार प्रजापति को जैसे अच्छा लगता है वैसे ही संसार को निर्मित कर देता है। ठीक उसी प्रकार कवि को जैसे अच्छा लगता है वैसे ही वह संसार को बदल देता है तथा उसी की तरह नई सृष्टि कर लेता है।

Question 2:

साहित्य समाज का दर्पण है—इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिए हैं?

Answer:

साहित्य समाज का दर्पण है—इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने निम्नांकित तर्क दिए हैं—

(i) यदि साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न उठती।

(ii) कवि का कार्य यथार्थ जीवन को प्रतिबिंबित करना ही होता तो वह प्रजापति का दर्जा न पाता।

(iii) कवि की सृष्टि निराधार नहीं होती।

Question 3:

दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि का क्या उद्देश्य है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

Answer:

कवि सोच-समझकर ही किसी एक पात्र में दुर्लभ गुणों को दिखाता है, ताकि समाज उस व्यक्ति-विशेष से प्रभावित होकर वैसा ही बनने का प्रयत्न करे जिससे समाज का हित प्रतिपादन संभव हो सके। वाल्मीकि ने 'रामायण' में राम के चरित्र एक साथ शील-शक्ति-सौंदर्य का समन्वय कर प्रजापति की भूमिका निभाई है। उन्होंने राम के चरित्र में वे सभी दुर्लभ गुण समाविष्ट कर दिए हैं जिससे वे मानव और महामानव से ईश्वरीय पद पर विराजमान हुए। इसके पीछे मूल उद्देश्य यही था कि समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया जाए। गुणवान, धैर्यवान, वीर्यवान, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढ़, चरित्रवान, समर्थ, प्रियदर्शन और शूरवीरता के गुणों से संपन्न श्री राम के गुणों को सबके सामने उभारने के लिए ही रावण का चरित्र अलग ढंग से गढ़ा गया। कवि अपने में ही प्रजापति बनकर समाज का हित साधन करता है।

Question 4:

साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं है, वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है—स्पष्ट कीजिए।

Answer:

साहित्य मानव-कल्याण के लिए रचा जाता है। उत्तम साहित्य वही होता है जिसमें मानव कल्याण की भावना निहित हो। जब मनुष्य विपरीत परिस्थितियों तथा दु:खों को देखकर जीवन से हार जाता है तब साहित्य उसे शांति प्रदान करता है। साहित्य केवल जीवन के पथ में थके हुए मनुष्य को शांति ही प्रदान नहीं करता, बल्कि उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है। वह निरंतर मानव को जीवन संग्राम में साहस से डटने की प्रेरणा देता है। जीवन के राग-विराग, सुख-दु:ख, आशा-निराशा आदि में समभाव रहने का संदेश देता है। जीवन-पथ से भटके हुए को प्रकाश देता है।

Question 5:

'मानव संबंधों से परे साहित्य नहीं है'—कथन की समीक्षा कीजिए।

Answer:

मानव और साहित्य का अटूट संबंध है। मानव समाज ही साहित्य की परिधि है। मानव-संबंध साहित्य की रीढ़ हैं। साहित्यकार मानव संबंधों से प्रेरित होकर ही साहित्य की रचना करता है। जब साहित्यकार को मानवीय संबंध झकझोर देते हैं तभी वह उन्हें साहित्यिक माध्यम से प्रकट करता है। मानवीय संबंधों के राग-विराग, सुख-दु:ख, आशा-निराशा से प्रेरित होकर ही कवि साहित्य सृजन करता है। साहित्य में इन्हीं मानव-संबंधी भावों का चित्रांकन होता है। कवि विधाता पर साहित्य रचना करते हुए भी उसे मानव-संबंधों की परिधि में खींच लाता है। इन्हीं मानव संबंधों की दीवार से हैमलेट की कवि-सुलभ सहानुभूति संघर्ष करती है। वस्तुत: मानव-संबंधों से परे साहित्य नहीं है।

Question 6:

पंद्रहवीं-सौलहवीं सदी में हिंदी साहित्य ने मानव-जीवन के विकास में क्या भूमिका निभाई?

Answer:

पंद्रहवीं-सोलहवीं (15वीं-16वीं) सदी में हिंदी साहित्य ने मानव-जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने सदियों से सामंती पिंजरे में बंद मानव-जीवन की मुक्ति के लिए वर्ण और धर्म की जंज़ीरों पर प्रहार किए। हिंदी साहित्य के संत कबीर, नानक, तुलसी, सूर, मीरा, कश्मीरी ललद्यद, बंगाली चंडीदास, तमिल तिरुवल्लुवर आदि साहित्यकारों ने संपूर्ण भारतवर्ष में जीर्ण मानव-संबंधों के पिंजरे को झकझोर दिया। इन्होंने अपनी अमूल्य वाणी के द्वारा पीड़ित जनता के मर्म को स्पर्श कर संघर्ष के लिए एकत्रित किया। इस काल के साहित्य ने मानव-समाज को नवजीवन की आशा प्रदान की। मानव-कल्याण के लिए सदियों से सोई आत्मा को इस साहित्य ने जागृत किया तथा मानव-समाज को संगठित करके उसका जीवन बदलने के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

Question 7:

साहित्य के पांचजन्य से लेखक का क्या तात्पर्य है? साहित्य का पांचजन्य मनुष्य को क्या प्रेरणा देता है?

Answer:

साहित्य के पांचजन्य से लेखक का तात्पर्य है—वह शंख ध्वनि, जो समाज को जगा दे। पांचजन्य श्रीकृष्ण के शंख का नाम है। जिस प्रकार महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण के शंख पांचजन्य ने अर्जुन को कर्म के प्रति प्रेरित किया था, उसी प्रकार साहित्य भी मानव को कर्म के प्रति सचेत करता है। साहित्य का यह पांचजन्य भाग्य के सहारे बैठने वाले तथा पिंजरे में बंद मनुष्यों को स्वतंत्र होने की प्रेरणा देता है। साथ ही भाग्य के सहारे बैठने तथा पिंजरे में बंद बैठकर पंख फड़फड़ाने वालों पर भी व्यंग्य करता है। वह कायरों और हारे हुए प्रेमियों को ललकारता हुआ उन्हें युद्ध-भूमि में उतरने का संदेश देता है। वह समाज में मानव कल्याण तथा मानव मुक्ति के गीत सुनाता है।

Question 8:

'साहित्यकार के लिए सृष्टा और द्रष्टा होना अत्यंत अनिवार्य है'—क्यों और कैसे?

Answer:

सृष्टा से तात्पर्य है—निर्माता अर्थात् स्वस्थ समाज का निर्माण करने वाला और द्रष्टा से अभिप्राय है—देखने वाला अर्थात् भविष्य की ओर उन्मुख। एक साहित्यकार के लिए इन दोनों गुणों का होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि साहित्य समाज को परिवर्तित और प्रेरित करता है। साहित्यकार कल्याणकारी तथा प्रेरणादायक साहित्य रचना कर सके, इसलिए उसमें सृष्टा और द्रष्टा दोनों का गुण अनिवार्य हैं। जिस साहित्यकार में सृष्टा और द्रष्टा के गुण नहीं होते वे समाज को पराधीनता और पराभव का पाठ पढ़ाते हैं। उनकी आँखें अतीत की ओर होती हैं। इनके दर्पण में इनको ही अहं भावना दिखाई देती है। लेकिन जिनमें ये गुण होते हैं वे साहित्यकार जनता के रोष और क्रोध को प्रकट कर उसे आत्मविश्वास प्रदान करते हैं। उनकी रुचि जनता की रुचि से मेल खाती है। उनका उद्देश्य विश्व को किसी दिशा में प्रेरित और परिवर्तित करना होता है।

Question 9:

'कवि पुरोहित' के रूप में साहित्यकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।

Answer:

साहित्यकार का व्यक्तित्व पूर्ण रूप से तभी निखरता है जब वह समर्थ रूप से परिवर्तन चाहने वाली जनता के साथ कवि-पुरोहित के समान बढ़ता है। जो साहित्यकार इस परंपरा को अपना लेता है वही साहित्य को उन्नत और समृद्ध बनाकर हमारे जातीय सम्मान की रक्षा कर सकता है। वही समाज को नवीन जीवन दृष्टि प्रदान कर सकता है। उसका साहित्य ही लोक मंगलकारी हो सकता है।

Question 10:

सप्रसंग व्याख्या कीजिए—

(क) 'कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती। हम उसमें अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें पर ऐसी आकृति ज़रूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है, जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं।'

(ख) 'प्रजापति-कवि गंभीर यथार्थवादी होता है, ऐसा यथार्थवादी जिसके पाँव वर्तमान की धरती पर हैं और आँखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई हैं।'

(ग) 'इसके सामने निरुद्देश्य कला, विकृत काम-वासनाएँ, अहंकार और व्यक्तिवाद, निराशा और पराजय के 'सिद्धांत' वैसे ही नहीं ठहरते जैसे सूर्य के सामने अंधकार।'

Answer:

(क) प्रसंग—प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अंतरा भाग-2' में संकलित तथा रामविलास शर्मा द्वारा रचित 'यथास्मै रोचते विश्वम्' नामक पाठ से अवतरित हैं। इनमें लेखक ने व्यक्ति को समाज की प्रिय आकृति देखने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या—लेखक का मत है कि कवि की यह रचना निराधार नहीं होती। हम उस साहित्य रचना में अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें लेकिन हमें ऐसी आकृति अवश्य देखनी चाहिए जो हमें प्रिय हो, तथा जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं जिसका हम निर्माण करना चाहते हैं तथा जो हमें प्रिय लगती हो, ऐसी आकृति को अवश्य देखना चाहिए।

विशेष—

(i) लेखक ने साहित्य सृजन में प्रिय आकृति देखने की प्रेरणा दी है।

(ii) भाषा सरल, सहज है।

(ख) प्रसंग—प्रस्तुत अवतरण 'अंतरा भाग-2' में संकलित लेखक रामविलास शर्मा द्वारा रचित 'यथास्मै रोचते विश्वम्' पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने प्रजापति-कवि की विशेषता का चित्रण किया है।

व्याख्या—लेखक का मत है कि प्रजापति-कवि गंभीर यथार्थवादी होता है। अर्थात प्रजापति-कवि सदैव यथार्थ का चित्रण गंभीरता से करता है। वह ऐसा यथार्थवादी होता है जिसके पाँव वर्तमान काल की धरती पर होते हैं और आँखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई होती हैं। ऐसा कवि सदैव वर्तमान को देखता हुआ भविष्य के प्रति सचेत होकर साहित्य सृजन करता है।

विशेष—

(i) लेखक ने प्रजापति कवि को यथार्थवादी बताया है।

(ii) भाषा खड़ी शैली है।

(iii) तत्सम शब्दावली की प्रचुरता है।

(ग) प्रसंग—प्रस्तुत पद्यांश रामविलास शर्मा द्वारा लिखित 'यथास्मै रोचते विश्वम्' नामक पाठ से अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने पांचजन्य साहित्य का महत्त्व बताया है।
व्याख्या—लेखक का कहना है कि पांचजन्य साहित्य के सामने उद्देश्यहीन कला, बुरी कामवासनाएँ, अहंकार और व्यक्तिगत भावनाएँ, निराशा और पराजय का सिद्धांत उसी प्रकार ही नहीं ठहरते, जिस प्रकार सूर्य के सामने अंधकार नहीं ठहर सकता। जैसे सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार पांचजन्य साहित्य के सामने सामाजिक बुराइयों से युक्त कलाएँ और विचार नष्ट हो जाते हैं।

विशेष—

(i) पांचजन्य साहित्य के महत्व का प्रतिपादन

(ii) भाषा सरल, सरस खड़ी बोली है।