वसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली ?
वसंत के आने की सूचना कवि को कैलेंडर से मिली थी, जिसमें यह लिखा था कि किस महीने के किस दिन वसंत-पंचमी होगी। इस दिन कवि के कार्यालय में अवकाश भी था। इससे भी उसे पता चला कि वसंत आ गया है।
'कोई छह बजे सुबह......... फिरकी सी आई, चली गई' पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि वसंत ऋतु के आने पर प्रात:काल की हवा अत्यंत स्वच्छ, शीतल और सुगंधित होती है। उसके मंद-मंद झोंके मन को बहुत सुखद प्रतीत होते हैं। वह देर तक नहीं रहती है। सूर्य के तेज़ होने के साथ ही उसकी शीतलता भी कम हो जाती है। इसलिए कवि ने वसंत की प्रात:कालीन स्वच्छ, शीतल और सुगंधित वायु का आना फिरकी के समान माना, है जो आकर शीघ्र ही चली जाती है।
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों ?
अथवा
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने के प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों? वसंत कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने दफ़्तर में उस दिन छुट्टी होने का बताया है। दफ़्तर में छुट्टी वसंत-पंचमी के अवसर पर हुई थी। इसलिए कवि को लगा कि अब वसंत आ गया है। कवि के कैलेंडर में भी उस दिन वसंत-पंचमी लिखी हुई थी। प्रकृति के परिवर्तनों को स्वयं नहीं परख सकने के कारण दफ़्तर में हुई छुट्टी को ही वह वसंत के आगमन का प्रमाण मानता है।
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों ?
अथवा
वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने के प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों? वसंत कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।वसंत-पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने दफ़्तर में उस दिन छुट्टी होने का बताया है। दफ़्तर में छुट्टी वसंत-पंचमी के अवसर पर हुई थी। इसलिए कवि को लगा कि अब वसंत आ गया है। कवि के कैलेंडर में भी उस दिन वसंत-पंचमी लिखी हुई थी। प्रकृति के परिवर्तनों को स्वयं नहीं परख सकने के कारण दफ़्तर में हुई छुट्टी को ही वह वसंत के आगमन का प्रमाण मानता है।
'और कविताएँ पढ़ते रहने से.........आम बौर आवेंगे—' में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए
कवि कहता है कि आधुनिक जीवन-शैली में हमें ऋतु-परिवर्तन के कारण प्रकृति में आए बदलाव को देखने का समय ही नहीं है। हमें कविताएँ पढ़कर ही पता चलता है कि वसंत में ढाक के जंगल कैसे दहकते हैं तथा आम पर बौर कैसे आते हैं। इस प्रकार कवि ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो प्रकृति के परिवर्तनों को अनदेखा करते हैं तथा शब्दजाल बुनकर प्रकृति का गुणगान करते हैं।
अलंकार बताइए—
(क) बड़े-बड़े पियराए पत्ते
(ख) कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
(क) पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकार।
(ख) उत्प्रेक्षा और मानवीकरण अलंकार।
(ग) मानवीकरण और उपमा अलंकार।
(घ) पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार।
किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है ?
'और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल आम और आवेंगे।'
'प्रकृति मनुष्य की सहचरी है' इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
आदिकाल से ही प्रकृति के साथ मनुष्य का गहरा संबंध रहा है। मनुष्य ने प्रकृति की गोद में जन्म लिया और उसी से उसने अपने भरण-पोषण की सामग्री भी प्राप्त की। प्रकृति ने मानव-जीवन को संरक्षण प्रदान किया। हिंसक पशुओं से बचने के लिए वह ऊँचे-ऊँचे वृक्षों का सहारा लेता था और वृक्षों के मीठे-रसीले फल खाकर अपनी भूख मिटाता था। सूर्य की तीव्र गर्मी से वृक्षों की शीतल छाया ही उसे बचाती थी। आज भी वर्षा प्राणी जगत में नव-जीवन का संचार करती है तो वसंत की मादकता उसे मदमस्त कर देती है। इस प्रकार प्रकृति सदा मनुष्य की सहचरी बनी रही है। परंतु आज के इस भौतिकतावादी युग में मनुष्य ने औद्योगिक विकास की धुन में प्रकृति के साथ अपना सामंजस्य समाप्त कर दिया है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने सारा ऋतु-चक्र ही बदल दिया है। पेट्रोलियम पदार्थों के अधिक प्रयोग ने वातावरण को इतना अधिक प्रदूषित कर दिया है कि साँस लेना भी कठिन हो गया है। इन सब कारणों से बाढ़, भूकंप, सूखा आदि की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
'वसंत आया' कविता में कवि की चिंता क्या है ? उसका प्रतिपाद्य लिखिए।
अथवा
'वसंत आया' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'वसंत आया' शीर्षक कविता के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि कवि ने मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली पर व्यंग्य किया है?
'वसंत आया' कविता में कवि की मुख्य चिंता यह है कि मनुष्य का प्रकृति से नाता टूटता जा रहा है। उसे ऋतु-परिवर्तन का ज्ञान प्राकृतिक परिवर्तनों से न होकर कैलेंडर से देखकर होता है कि अमुक दिन, तिथि, माह में कौन-सी ऋतु चल रही है। प्रकृति में अब भी निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं जैसे वसंत के आगमन पर पत्तों का झड़ना, नई कोंपलों का फूटना, सुगंधित मंद-समीर का बहना, ढाक के जंगलों का दहकना, कोयल की कूक, भँवरे की गुंजार आदि, परंतु आज के मनुष्य की दृष्टि इन प्राकृतिक परिवर्तनों को नहीं देख पाती और वह कैलेंडर देखकर ही जान पाता है कि आज वसंत-पंचमी है।
'पत्थर' और 'चट्टान' शब्द किसके प्रतीक हैं ?
कवि ने 'पत्थर' और 'चट्टान' शब्दों का प्रयोग उन बाधाओं के लिए किया है जो सृजन के मार्ग में बाधक बन जाती हैं। इन्हें नष्ट करके तथा तोड़कर ही नव-निर्माण किया जा सकता है। खेत से पत्थर, कंकड़ आदि निकालने पर ही खेत उपजाऊ बनता है। इसी प्रकार से साहित्यकार रूढ़ियों के बंधनों से मुक्त होकर ही श्रेष्ठ साहित्य की रचना कर सकता है।
कवि को धरती और मन की भूमि में क्या-क्या समानताएँ दिखाई पड़ती हैं ?
कवि ने धरती को उपजाऊ बनाने के लिए चट्टानों और पत्थरों को तोड़ने व ऊसर और बंजर को समतल करने की आवश्यकता बताई है। परती को खेत में बदलने के लिए इन सबको तोड़ना आवश्यक है। इसके बाद ही खेत की मिट्टी रस-युक्त होकर बीज को अंकुरित करने में सहायक सिद्ध होती है। इसी प्रकार से कवि मन की ऊब तथा खीज से मुक्त करने की बात कहता है, क्योंकि इससे सृजन में बाधा उत्पन्न होती है। इन्हें दूर करने से ही मन रस-सिक्त होकर सृजन में लीन हो जाता है।
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए—
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को ?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो।
कवि कहता है कि जिस प्रकार मिट्टी को अच्छी प्रकार से जोतने से उसमें रस आ जाता है और वह बीज के अंकुरित होने में सहायक हो जाती है, उसी प्रकार से जब हम अपने मन में व्याप्त खीज को नष्ट कर देंगे तो निर्मल मन में श्रेष्ठ सृजन हो सकेगा। व्यर्थ की काट-छाँटकर नष्ट कर देने से ही नव-निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो सकती है।
कविता का आरंभ 'तोड़ो तोड़ो तोड़ो' से हुआ है और अंत 'गोड़ो गोड़ो गोड़ो' से। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?
कवि ने ऐसा इसलिए किया है कि पहले वह चाहता है कि नवनिर्माण करने से पूर्व जो निरर्थक, व्यर्थ तथा बाधक तत्व हैं उन्हें नष्ट कर दिया जाए। प्रत्येक नवनिर्माण से पूर्व पुराने को तोड़ना ही पड़ता है, इसलिए कवि ने कविता के प्रारंभ में 'तोड़ो तोड़ो तोड़ो' शब्दों का प्रयोग किया है। जब तोड़ने का कार्य पूरा हो जाता है तो नव-निर्माण प्रारंभ हो जाता है। इसी सृजन को महत्वपूर्ण तथा सफल बनाने के लिए कवि ने 'गोड़ो गोड़ो गोड़ो' शब्दों का प्रयोग किया है।
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है ?
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जब तक धरती कंकड़, पत्थर, चट्टानों आदि से ढकी रहती है, उसकी रसीली शक्ति को हम पहचान नहीं सकते हैं। इन सबके टूटने से ही परती भूमि खेत में बदल जाती है। उसकी मिट्टी का रसीलापन बीज को पोषण देकर उसे अंकुरित होने में सहायता देता है। इसलिए जब तक धरती अपने इन बाह्य आवरणों से मुक्त नहीं होगी तभी उसकी आंतरिक शक्ति को हम पहचान नहीं सकते।
'आधे-आधे गाने' के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
इस कथन के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जब कवि का मन ऊब और खीज से ग्रस्त होता है तो वह सार्थक साहित्य की रचना भी नहीं कर सकता। उसके गीत आधे-अधूरे निष्प्राण से प्रतीत होते हैं। मन की ऊब और खीज को मिटाकर ही वह सार्थक रचना कर सकता है।