बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है और उसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है ?
बनारस में वसंत का आगमन अचानक ही होता है। वसंत के आगमन पर सब प्रसन्न होते हैं। परंतु बनारस में वसंत के आगमन पर लहरतारा अथवा मडुवाडीह मोहल्लों की ओर से धूलभरी आँधियाँ चलने लगती हैं। इससे लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। उन्हें धूल फाँकनी पड़ जाती है। वसंत में पतझड़ जैसा मौसम हो जाता है।
'खाली कटोरों में वसंत का उतरना' से क्या आशय है ?
इस कथन के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि वसंत के आगमन पर जहाँ सारे बनारस शहर में धूलभरी आँधियाँ चलने लगती हैं वहीं खाली कटोरे लेकर बैठे हुए भिखारियों को यह उम्मीद बँधती है कि वसंत के आगमन के साथ ही अनेक तीज-त्योहार आएँगे और उनके खाली कटोरे दान-दाताओं के दान से भर जाएँगे।
बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है ?
बनारस में गंगा-तट पर सदा किसी-न-किसी पर्व पर बहुत भीड़ लगी रहती है। श्रद्धालु दूर-दूर से आकर इस तीर्थ पर पूजा-अर्चना, स्नान-दान करते हैं तथा विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। इस प्रकार यह शहर सदा लोगों से भरा रहता है। बनारस की रिक्तता को कवि ने यहाँ पर प्रतिदिन अनेक अर्थियों के गंगा घाट की ओर विसर्जन तथा संस्कार करने के लिए ले जाते हुए चित्रित करके दिखाया है।
बनारस में धीरे-धीरे क्या-क्या होता है ? 'धीरे-धीरे' से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?
बनारस में धीरे-धीरे धूल उड़ती है। यहाँ के लोग धीरे-धीरे चलते हैं। यहाँ के घंटे धीरे-धीरे बजते हैं। यहाँ शाम भी धीरे-धीरे होती है। इस प्रकार बनारस में सभी कार्य धीमी गति से होते हैं। यहाँ के लोग सभी कार्य सहज रूप से आराम से करते हैं। उन्हें किसी भी काम में जल्दी अथवा हड़बड़ी मचाने की ज़रूरत नहीं होती है। कवि के अनुसार अपनी धीमी गति से सभी कार्य करने के कारण बनारस एक ऐसा शहर कहा जा सकता है जहाँ सभी कार्य अपनी एक विशेष 'रौ' में होते हैं।
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है ?
कवि के अनुसार बनारस में सभी कार्य एक सामूहिक लय में धीरे-धीरे होते हैं। इससे सारा शहर दृढ़ता से बँधा हुआ है। इस कारण यहाँ जो कुछ भी जहाँ है वह वहीं उसी रूप में स्थित रहता है। गंगा अपने निश्चित स्थान पर प्रवाहित होती रहती है। गंगा-किनारे नाव अपने निश्चित स्थान पर बँधी रहती है। तुलसीदास की खड़ाऊँ भी वर्षों से एक निश्चित स्थान पर ही पड़ी हुई हैं।
'सई-साँझ' में घुसने पर बनारस की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है ?
संध्या के समय बनारस में घुसने पर पता चलता है कि वहाँ के घाटों पर गंगा जी की आरती हो रही है। उस समय इस शहर की बनावट अद्भुत लगती है। मंदिरों-घाटों पर जलने वाले दीपों से यह शहर जगमगा उठता है। गंगा के जल में इसके घाटों की छाया ऐसी लगती है जैसे आधा शहर जल में और आधा बाहर है। कहीं पूजा-पाठ, हवन-मंत्र आदि का जाप हो रहा होता है तो कहीं चिताग्नि से उठने वाला धुआँ दिखाई देता है। उस समय बनारस में श्रद्धा, आस्था, विरक्ति, विश्वास, भक्ति आदि का मिला-जुला रूप दिखाई देता है।
बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।
बनारस शहर के लिए इस कविता में निम्नलिखित मानवीय क्रियाएँ आई हैं—
(i) भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन—भिखारियों के कटोरे बिलकुल खाली हैं। उन्हें भीख मिलने का इंतज़ार है।
(ii) धीरे-धीरे चलते हैं लोग—बनारस के लोगों का जीवन अत्यंत सहज गति से धीरे-धीरे चलता है। वे सब कार्य अत्यंत सहज रूप से करते हैं।
(iii) जो है वह खड़ा है, बिना किसी स्तंभ के—बनारस में प्रत्येक व्यक्ति अपनी श्रद्धा, भक्ति और आस्था के सहारे ही जी रहा है।
(iv) आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ—यहाँ प्रत्येक व्यक्ति जब गंगा की आरती उतारता है तो गंगा-जल में उसके हाथों की छवि से स्तंभ से बन जाते हैं।
सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था?
सरोज का विवाह अन्य विवाहों से भिन्न था। उसके विवाह में उसके पिता ने कोई दान-दहेज नहीं दिया था। इस विवाह में उनका कोई सगा-संबंधी भी नहीं आया था। सरोज के पिता ने किसी को निमंत्रण-पत्र भी नहीं भेजा था। इस विवाह में विवाह के गीत, रात्रि-जागरण आदि भी नहीं किया गया था। इस विवाह में कुछ सामान्य जनता के लोग, साहित्यकार आदि ही आए थे। विदाई के समय कन्या को दी जानेवाली शिक्षा भी कवि ने सरोज को स्वयं दी थी।
शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए—
(क) 'यह धीरे-धीरे होना ............ समूचे शहर को'
(ख) 'अगर ध्यान से देखो ........... और आधा नहीं है'
(ग) 'अपनी एक टाँग पर ........... बेखबर'
(क) इन पंक्तियों में कवि ने तत्सम, तद्भव तथा देशज शब्दों का प्रयोग किया है। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। मुक्त छंद की रचना है। कवि ने बनारस शहर की इस विशेषता की ओर संकेत किया है कि यहाँ सभी कार्य सहज रूप से तथा अपनी एक विशेष 'रौ' में होते हैं।
(ख) इन पंक्तियों में कवि ने आरती के समय बनारस की शोभा का वर्णन करते हुए गंगा-जल में उसकी छाया को संपूर्ण बनारस माना है। भाषा सहज, सरल तथा व्यावहारिक है। मुक्त छंद युक्त रचना है। लाक्षणिकता का समावेश है।
(ग) कवि बनारस की विशेषताओं का वर्णन करते हुए इसे अपनी मान्यताओं, आस्था, विश्वास, श्रद्धा, भक्ति आदि में मग्न शहर बताता है। जिसे अपने अतिरिक्त और किसी की चिंता नहीं है। अनुप्रास अलंकार शोभनीय है। भाषा में विदेशी शब्दों का सहज रूप में प्रयोग किया गया है। मुक्त छंद की रचना है। लाक्षणिकता तथा प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
बच्चे का उधर-उधर कहना क्या प्रकट करता है ?
बच्चे का उधर-उधर कहना यह प्रकट करता है जिधर भी उसकी पतंग ऊँची उड़ती जा रही है उधर ही हिमालय पर्वत है। उसे लगता है कि जितनी ऊँची उसकी पतंग उड़ रही है उतना ही ऊँचा हिमालय होगा। इसलिए वह उसी ओर हिमालय देखता है जिधर उसकी पतंग जा रही है। पतंग उड़ाते समय उसे अपनी पतंग के अतिरिक्त और कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह बाल सुलभ ढंग से कह देता है कि हिमालय उधर है जिधर उसकी पतंग उड़ रही है।
'मैं स्वीकार करूँ मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है'— प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि बच्चे के सहज भाव से यह कहने पर कि जिधर उसकी पतंग उड़ रही है। हिमालय उधर है उसे यह मानना पड़ा कि बालक जो कुछ कह रहा है उसे वह स्वीकार कर रहा है। बालक का बिना किसी झिझक और संकोच के उसके प्रश्न का उत्तर देना कवि को मुग्ध कर देता है। बालक द्वारा यथार्थ को अपने ढंग से देखा जाना और सहज रूप से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना कवि उस बालक से कुछ सीखने की प्रेरणा भी देता है।