''मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई"—पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
इस पंक्ति के माध्यम से देवसेना अपने अतीत पर दृष्टिपात करते हुए कह रही है कि वह आजीवन अपने हृदय में कोमल भावनाओं को सँजोती रही है। उसका यह कार्य भ्रमवश किया हुआ ही था क्योंकि जिसे उसने अपने द्वार पर आने पर ही लौटा दिया था उसके लिए कोमल कल्पनाएँ करना व्यर्थ ही है। इसलिए उसे अंत में उन संचित भावनाओं को भीख में ही लुटाना पड़ रहा है। वह अपनी जीवनभर संचित कोमल भावनाओं की पूँजी को सुरक्षित नहीं रख सकी।
कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
कवि ने आशा को बावली इसलिए कहा है क्योंकि मनुष्य जीवन में अनेक प्रकार की आशाएँ लगाए रहता है कि वह यह करेगा, ऐसा करेगा, वैसा करेगा परंतु उससे कुछ हो नहीं पाता। उसकी अधिकांश आशाएँ अधूरी रह जाती हैं अथवा पूरी हो नहीं हो पातीं। वह बारबार आशाएँ पूरी न होने पर भी आशा लगाकर बैठा रहता है कि अब नहीं तो कल तो उसकी आशा पूरी हो ही जाएगी। इस प्रकार निरंतर आशा के सहारे जीना देखकर ही कवि ने आशा को बावली कहा है। देवसेना ने भी अनेक आशाएँ लगाई थीं परंतु उसकी भी कोई आशा पूरी नहीं हुई थी।
''मैंने निज दुर्बल ......... होड़ लगाई" इन पंक्तियों में 'दुर्बल पद बल' और 'हारी होड़' में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
अथवा
इस गीत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
देवसेना जीवनभर अनेक विसंगतियों का सामना करती रही है। उसके भाई का सारा परिवार हूणों द्वारा मार दिया गया। वह अकेली ही राष्ट्र-सेवा में लगी रही। इसके लिए उसने अपने प्यार को भी त्याग दिया। उसका सांसारिक विपत्तियों का अकेले सामना करना ऐसा है जैसे वह प्रलयकालीन स्थितियों का अपने दुर्बल पैरों से मुकाबला कर रही हो। उसने प्रलयकालीन परिस्थितियों में जूझने की जो शर्त लगाई उसे पूरा करने का उसने पूरा प्रयत्न किया परंतु इस शर्त में उसे पराजित ही होना पड़ा। वह संसार की कुटिल चालों का सामना नहीं कर सकी।
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए—
(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ............... तान उठाई।
(ख) लौटा लो ............... लाज गँवाई।
(क) देवसेना मानती है कि स्वपन थक गए हैं परंतु आसक्ति अभी भी मिटी नहीं है। उसके कानों में विहाग का गीत गूँजता रहता है। तत्सम-प्रधान शब्दावली है। 'श्रमित स्वपन' उनींदी श्रुति में लाक्षणिक सौंदर्य दृष्टव्य है। अनुप्रास अलंकार है। श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण किया गया है। माधुर्यगुण तथा गेयता विद्यमान है। स्थिति विशेष का चित्रात्मक निरूपण किया गया है।
(ख) देवसेना को लगता है कि वह अब और अधिक संताप सहन नहीं कर सकेगी। इसलिए वह निष्ठुर संसार को कहती है कि उसने उसे जो कुछ दिया है उसे वह लौटा ले। वह तो अपने मन की लज्जा की भी रक्षा न कर सकने के कारण उसे भी खो बैठी है। तत्सम-प्रधान लाक्षणिक शब्दावली है। देवसेना के हृदय की वेदना व्यक्त हुई है। श्रृंगार के वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण किया गया है। मानवीकरण अलंकार के द्वारा भावों का मानवीकरण किया गया है।
देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?
देवसेना के भाई बंधुवर्मा और उसके सारे परिवार को हूणों ने मार दिया था। भाई की मृत्यु के बाद देवसेना अकेली ही भाई के स्वप्नों को पूरा करने के लिए राष्ट्र-सेवा में लग जाती है। वह स्कंदगुप्त को प्रेम करती है परंतु स्कंदगुप्त विजया की ओर आकर्षित है। इसलिए उसे प्रेम में निराशा ही मिलती है। बाद में स्कंदगुप्त उससे प्रणय निवेदन करता है तो वह उसे स्वीकार नहीं करती। इस प्रकार दोनों ही बार वह प्रेम में निराश ही रहती है। राष्ट्र की सेवा करने में भी वह आक्रमणकारियों का सामना नहीं कर पाती। वह आजीवन विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते-करते हार जाती है। उसके दुर्बल पग प्रलय को पराजित नहीं कर पाते।
'कार्नेलिया का गीत' कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
'कार्नेलिया का गीत' कविता जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक 'चन्द्रगुप्त' से अवतरित है। इस गीत में यूनान के सम्राट सिकंदर के महान उत्तराधिकारी सेल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया भारत-भूमि के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो जाती है और उसके मुख से यह गीत प्रस्फुटित हो जाता है। वास्तव में यह देश मधुमय है। हमारा देश राग एवं प्रेम की भूमि है। भारत वह देश है जहाँ अपरिचित व्यक्ति को भी आश्रय मिलता है।
भारत देश के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कार्नेलिया कहती है कि हमारा देश वह स्थान है जहाँ लालिमामयी आभा से सुंदर तरु शिखाएँ नाचती हुई दिखाई पड़ती हैं। प्रात:काल सर्वत्र सूर्य की किरणें छा जाने से वृक्षों की सुंदर शाखाएँ लहलहाती दिखाई पड़ती हैं। कमल के फूलों के परागकोश सूर्य की किरणों के कारण जगमगा उठते हैं। हरियाली पर मंगलमय कुमकुम बिखरा हुआ है जिसमें जीवन का संचार दिखाई देता है। समस्त प्रकृति सचेतन दिखाई पड़ती है। यहाँ के पक्षी इंद्रधनुष की भाँति रंग-बिरंगे पंखों को पसारे हुए शीतल पवन के सहारे इसे अपना प्यारा नीड़ समझकर इसी ओर मुख करके उड़ते हैं अर्थात ठंडी-ठंडी हवा में अपना प्रिय नीड़ समझकर रंग-बिरंगे पक्षी उड़ते हैं।
कार्नेलिया आगे कहती है कि यहाँ के लोगों की आँखों में वर्षा ऋतु के बादलों की तरह करुणा का जल भरा रहता है अर्थात यहाँ के जन-जन के नेत्रों में दूसरे के प्रति करुणा और स्नेह के भाव रहते हैं। यहाँ पर असीम आकाश में बहती हुई वायु की तरंगें किनारा पाकर टकराती हैं अर्थात जहाँ चारों ओर शीतल वायु बहती रहती है। प्रात:काल के समय रातभर जागते रहने के कारण तारे जब कुछ खुमारी में मस्त हुए से ऊँघने लगते हैं तो यह उषा सुंदरी सूर्य रूपी स्वर्ण से जन-जीवन पर सुख-सौंदर्य और उत्साह बरसाने लगती है। तात्पर्य यह है कि उषा देवी प्रात:काल सूर्य रूपी स्वर्णिम घट लेकर पश्चिमी सागर में से भरकर उड़ेलती है और चारों ओर सुख एवं प्रकाश का प्रसार करती है।
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए—
'हेम कुंभ ले उषा सवेरे—भरती ढुलकाती सुख मेरे
मदिर ऊँघते रहते जब—जगकर रजनी भर तारे।' में निहित प्राकृतिक सौंदर्य को अपने शब्दों में लिखिए।
इन पंक्तियों में कवि ने प्रभातकालीन प्राकृतिक वातावरण का आकर्षक वर्णन किया है। कवि को ऐसा लगता है मानो उषा रूपी सुंदरी स्वर्णिम कलश से सुबह-सुबह मेरे समस्त सुख उड़ेल देती है जबकि सारी रात जागने के कारण तारे मस्ती में ऊँघने लगते हैं। उषा और तारों का मानवीकरण किया गया है। रूपक, अनुप्रास अलंकार है। भाषा तत्सम-प्रधान, लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक है। संगीतात्मक का गुण विद्यमान है। प्रभातकालीन वातावरण का आलंकारिक एवं आकर्षक वर्णन अत्यंत सजीवता के साथ चित्रित किया गया है। उषा स्वर्णिम घट प्रभातकालीन लालिमा से बिखेर रही है।
'जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा'—पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि भारतवर्ष राग, माधुर्य और प्रेम से युक्त देश है। यहाँ आने पर सर्वथा अनजान एवं अपरिचित व्यक्ति को भी यहाँ के लोगों से पूर्ण स्नेह और आश्रय प्राप्त होता है। यहाँ के लोग सेवाभाव से युक्त हैं तथा अपरिचितों को भी पूरा आदर, सम्मान तथा प्रेम देते हैं।
प्रसाद शब्दों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में कैसे कुशल हैं? कविता से उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
प्रसाद शब्दों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में बहुत कुशल हैं। 'कार्नेलिया का गीत' कविता में कवि के इस रूप के सर्वत्र दर्शन होते हैं। कवि ने भारतवर्ष को 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' कहकर भारतवर्ष को प्रेम से परिपूर्ण देश बताया है। 'अनजान क्षितिज' को सहारा मिलने के माध्यम से कवि यह कह रहा है कि इस देश में अपरिचितों को भी आश्रय प्राप्त हो जाता है। यहाँ के लोगों के मन में जो सबके प्रति करुणा का भाव है उसे कवि ने 'बरसाती आँखों के बादल' कहकर व्यक्त किया है। इसी प्रकार से प्रभातकालीन सौंदर्य की लालिमा कवि इन शब्दों के द्वारा व्यक्त करता है 'हेम कुंभ ले उषा सवेरे—भरती ढुलकाती सुख मेरे।' इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रसाद जी अपने शब्द-चयन से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में कुशल हैं।
कविता में व्यक्त प्रकृति-चित्रों को अपने शब्दों में लिखो।
कवि के अनुसार भारत असीम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। कवि ने इस कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया है। उषा सुंदरी सूर्य रूपी कुंभ से धरती पर नवजीवन का संचार कर देती है। इस प्रकार प्राकृतिक दृष्टि से भारतवर्ष अत्यंत ही समृद्ध देश है। यहाँ का सूर्योदय सर्वत्र आनंद का संचार कर देता है। इसलिए कवि कहता है कि—'छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुमकुम सारा।' यहाँ सदा शीतल वायु बहती रहती है। वर्षा ऋतु में बरसते हुए बादल यहाँ के लोगों के मन में निहित स्नेह भाव के प्रतीक हैं। इस देश की प्राकृतिक सुषमा से प्रभावित होकर सागर भी इसके चरणों को पखारता है। 'लहरें टकराती अनंत की पाकर जहाँ किनारा।' कवि ने रूपक, उपमा, अनुप्रास, मानवीकरण आदि अलंकारों के माध्यम से भारत की प्राकृतिक सुंदरता का आकर्षक वर्णन किया है।