NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 10 - कवित्त/सवैया

Question 1:

कवि ने 'चाहत चलन ये सँदेसो ले सुजान को' क्यों कहा है ?

Answer:

कवि की प्रेमिका का नाम सुजान है। वह उससे बहुत प्रेम करता है। वह उससे मिलना चाहता है, परंतु वह मिल नहीं रही है। उसके द्वारा भेजे गए संदेश भी वह ले तो लेती है परंतु कोई उत्तर नहीं देती। कवि मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया है। उसे लगता है कि कभी भी उसके प्राण निकल सकते हैं। वह अपनी प्रेमिका सुजान तक यह संदेसा पहुँचाना चाहता है कि उसके दर्शनों की अभिलाषा में ही उसके प्राण अब तक अटके हुए हैं इसलिए वह आकर उसे दर्शन दे।

Question 2:

कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन-से प्रण पालन को देखना चाहता है?

Answer:

कवि अपनी प्रेमिका के न मिलने से बहुत व्याकुल है। वह उसके वचनों को सुनकर भी अनसुना कर देती है। वह अब अपने हृदय से उसे पुकारता है, मुख से मौन रहता है। वह अब यह देखना चाहता है कि उसकी खामोशी तथा हृदय की पुकार का उसकी प्रेमिका पर क्या प्रभाव होता है। वह कब तक उससे न बोलने की अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहती है ? उसे विश्वास है कि उसके हृदय की पुकार उसकी प्रेमिका को बोलने पर विवश कर देगी।

Question 3:

कवि ने किस प्रकार की पुकार से 'कान खोलिहै' की बात कही है ?

अथवा

'रुई दिए रहौगे कहाँ लौ बहरायबे की ?
कब हूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलिहै।'

निहित व्यंजना पर प्रकाश डालिए।

Answer:

कवि अपनी प्रेमिका को पुकार-पुकारकर हार गया है। वह उसे कोई उत्तर नहीं देती तथा सुनी-अनसुनी कर देती है। अब कवि ने यह निश्चय किया है कि वह मूक रहेगा तथा उसका हृदय प्रतिपल उसे पुकारता रहेगा। उसे विश्वास है कि उसके हृदय की सच्ची पुकार से अवश्य ही एक दिन उसकी प्रेमिका के कान खुल जाएँगे और वह उसके प्रेम की पुकार को सुन लेगी।

Question 4:

प्रथम सवैये के आधार पर बताइए कि प्राण पहले कैसे पल रहे थे और अब क्यों दुखी हैं ?

Answer:

पहले संयोग की अवस्था थी। प्रेमी-प्रेमिका साथ-साथ थे। दोनों एक-दूसरे के सौंदर्य का पान करते हुए मग्न रहते थे। वे प्रेम के पोषण से संतुष्ट रहते थे। सर्वत्र सुख के साधन बिखरे हुए थे। उनकी प्रेम-क्रीड़ा में कोई भी व्यवधान नहीं था। अब प्रेमी-प्रेमिका बिछुड़ गए हैं। इन वियोग के क्षणों में सब कुछ दुखदायी प्रतीत होता है। नेत्र शोकाग्नि में जल रहे हैं। सुख के सभी साधन नष्ट हो गए हैं। दोनों के मध्य वियोग रूपी पहाड़ आकर खड़े हो गए हैं। संयोग की घड़ियाँ सुखद थीं तथा वियोग के पल दु:खद बन गए हैं।

Question 5:

घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।

Answer:

भाषा पर घनानंद का अद्भुत अधिकार था। इनकी काव्य-भाषा के संबंध में कहा गया है—

'नेही यहा ब्रजभाषा प्रवीण औ सुंदर तानि के भेद को जानै,
जोग वियोग की रीति मैं कोविद भावना-भेद-स्वरूप को ठानै।
चाह के रंग मैं भी ज्यौ हियो, बिछुरें-मिलें प्रीतम सांति न मानै,
भाषा-प्रबीन सुछंद सदा रहै, सो घन जी के कवित्त बखानै।'

इससे स्पष्ट है कि इनकी रचनाओं में ब्रजभाषा की प्रधानता है, जिसमें सर्वत्र कोमलकांत पदावली तथा भावों के अनुरूप शब्दावली प्राप्त होती है। इन्होंने तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी आदि सभी प्रकार के शब्दों का अवसरानुकूल प्रयोग किया है। जैसे—लोचन, पोष, दोष, छबीले, पयान, आरसी। इन्होंने यथास्थान सूक्तियों, मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया है। इनकी काव्यभाषा में लाक्षणिकता, ध्वन्यात्मकता, चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं। इनके काव्य में विरह का वर्णन अधिक है इसलिए इनकी शब्दावली माधुर्य-गुण से युक्त हो गई है। शब्दालंकारों के चमत्कार इनके काव्य में सर्वत्र दिखाई देते हैं। इनकी रचनाएँ कवित्त, सवैया, धनाक्षरी आदि छंदों में आबद्ध होने के कारण गेय हैं।

Question 6:

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।

(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि गहि राखति ही दैं दैं सनमान को।

(ख) कूक भरी मूकता बुलाय आप बोलि है।

(ग) अब न घिरत घन आनँद निदान को।

Answer:

(क) पुनरुक्ति प्रकाश और वक्रोक्ति

(ख) विरोधाभास और अनुप्रास (ग) अनुप्रास और श्लेष।

Question 7:

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए—

(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।

(ख) मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।

(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।

(घ) सो घनआनँद जान अजान लौं टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।

(ङ) तब हार पहार से लागत हे, अब आनि कै बीच पहार परे।

Answer:

(क) अब तो मृत्यु का समय निकट आ गया है यह जानकर मन बहुत व्याकुल और विचलित हो उठता है।

(ख) अब चुप रहकर यह देखना है कि मेरे हृदय की पुकार सुनकर भी वह कब तक न बोलने की अपनी प्रतिज्ञा का पालन करती है क्योंकि मेरे प्रेमभरे हृदय की मूक पुकार तो उसे अवश्य ही स्वत: बोलने पर विवश कर देगी।

(ग) संयोग के क्षणों में नेत्रों से प्रेमिका के सौंदर्य का पान करते हुए जीते थे तथा आनंदमग्न रहते थे परंतु अब वियोग के क्षणों में विरह से संतृप्त नेत्र वियोगाग्नि में जले जा रहे हैं। संयोग के क्षणों की सुखद अनुभूतियाँ वियोग के क्षणों में दुखद बन गई हैं।

(घ) प्रेमी ने प्रेमिका को अपने हृदय की समस्त प्रेम-भावनाओं से भरकर पत्र लिखा था जो उसने पढ़ने के स्थान पर फाड़कर फेंक दिया। (ङ) संयोग के क्षणों में प्रेम-क्रीड़ा करते हुए प्रेमिका के गले का जो हार पहाड़ जैसा लगता था अब इन वियोग के क्षणों में उन दोनों के बीच वियोग पहाड़ बनकर खड़ा हो गया है।