लेखक सेवाग्राम कब और क्यों गया था?
लेखक सन् 1938 के आसपास सेवाग्राम अपने भाई बलराज के पास गया था। वह कुछ दिन अपने भाई के साथ बिताना चाहता था। सेवाग्राम में जाने का एक कारण यह था कि वह गांधी जी को पास से देखना और बात करना चाह रहा था।
लेखक का गांधी जी के साथ चलने का पहला अनुभव किस प्रकार का रहा?
गांधी जी सुबह सात बजे घूमने निकलते थे। वे लेखक के भाई बलराज के घर के सामने से गुज़रते थे। लेखक उन्हें देखने और मिलने के लिए उत्सुक था। वह सुबह जल्दी उठकर घर के सामने खड़ा हो गया। सात बजे गांधी जी आश्रम से निकले। उन्हें देखकर लेखक प्रसन्न हो गया। लेखक का भाई अब तक सो रहा था। लेखक ने उसे जगाया। लेखक को अकेले उनके पास जाने से संकोच हो रहा था, इसलिए वह जिद्द करके अपने भाई को अपने साथ ले गया। बलराज ने उसका परिचय गांधी जी से करवाया। लेखक गांधी जी से बात करना चाहता था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरू करें। लेखक ने गांधी जी को रावलपिंडी आने की याद दिलाई। इस तरह उसका गांधी जी से वार्तालाप शुरू हुआ। लेखक गांधी जी से मिलकर बहुत उत्साहित और प्रसन्न हुआ था।
लेखक ने सेवाग्राम में किन-किन लोगों के आने का ज़िक्र किया है?
लेखक लगभग तीन सप्ताह तक सेवाग्राम में रहा। वह सुबह गांधी जी के साथ घूमने और शाम प्रार्थना सभा में जाता था। वहाँ उसे जाने-माने देशभक्त पृथ्वी सिंह आज़ाद, मीरा बेन, खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान, राजेंद्र बाबू आदि देखने को मिले। पृथ्वी सिंह आज़ाद से लेखक को उनके अंग्रेज़ों की गिरफ्त से भाग निकलने का किस्सा भी सुनने को मिला।
रोगी बालक के प्रति गांधी जी का व्यवहार किस प्रकार का था?
रोगी बालक के प्रति गांधी जी का व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण तथा विनम्र था। रोगी बालक ने अधिक मात्रा में ईख पी ली थी, इसलिए उसके पेट में दर्द शुरू हो गया था। बालक दर्द से चिल्लाते हुए गांधी जी को बुलाने की ज़िद्द कर रहा था। गांधी जी आए। उन्होंने आते ही बालक के फूले हुए पेट पर हाथ फेरा और उसे सहारा देकर बैठाया। गांधी जी ने उस बालक को मुँह में हाथ डालकर उल्टी करने के लिए कहा। लड़के के उल्टी करने तक गांधी जी उसकी पीठ सहलाते रहे। उल्टी करते ही उसका पेट हल्का हो गया। बालक को आराम करने के लिए कहकर गांधी जी वहाँ से हँसते हुए निकल गए। गांधी जी के मन में उस बालक के प्रति कोई क्षोभ नहीं था। उनके चेहरे पर बालक के प्रति प्यार झलक रहा था।
कश्मीर के लोगों ने नेहरू जी का स्वागत किस प्रकार किया?
नेहरू जी का कश्मीर के लोगों ने कश्मीर पहुँचने पर भव्य स्वागत किया। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में कश्मीर को शानदार ढंग से सजाया गया था। झेलम नदी पर, शहर के एक किनारे से लेकर दूसरे किनारे तक, सातवें पुल से अमीराक दल तक नावों में उनकी शोभा यात्रा देखने की मिली थी। नदी के दोनों ओर हज़ारों कश्मीरी निवासियों ने पूरे उत्साह के साथ उनका स्वागत किया था। वह दृश्य बहुत अद्भुत था।
अखबार वाली घटना से नेहरू जी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता स्पष्ट होती है?
नेहरू जी को कश्मीर में लेखक के फुफेरे भाई के बँगले में ठहराया गया था। लेखक और उसके फुफेरे भाई को नेहरू जी की देखरेख के लिए नियुक्त किया गया था। लेखक नेहरू जी के साथ कई दिन रहा, परंतु उसका नेहरू जी से कोई वार्तालाप नहीं हुआ। एक दिन लेखक अख़बार पढ़ रहा था। नेहरू जी अपने कमरे से नीचे हॉल में आए। अख़बार लेखक के हाथ में देखकर नेहरू जी एक कोने में चुपचाप खड़े हो गए। लेखक ने सोचा कि नेहरू जी के माँगने पर वह अख़बार को नेहरू जी को देगा; इससे उसका नेहरू जी से वार्तालाप हो जाएगा। कुछ देर नेहरू जी चुपचाप खड़े रहे। फिर उन्होंने लेखक से विनम्रता से कहा कि यदि उसने अख़बार पढ़ लिया हो तो उन्हें दे दें। यह सुनकर लेखक शर्मिंदा हुआ था। नेहरू जी के इस प्रकार के व्यवहार से पता चलता है कि उनके व्यक्तित्व में विनम्रता का गुण था। उनमें बड़ा आदमी होने का लेशमात्र भी अभिमान नहीं था।
फ़िलिस्तीन के प्रति भारत का रवैया बहुत सहानुभूतिपूर्ण एवं समर्थन-भरा क्यों था?
फ़िलिस्तीन के प्रति भारत का व्यवहार बहुत सहानुभूतिपूर्ण एवं समर्थन भरा था। भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता की रही है। भारतउपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोधी है। भारत किसी भी देश को गुलाम नहीं देखना चाहता था। इसीलिए भारत के देशवासियों ने फ़िलिस्तीन आंदोलन के प्रति सहानुभूति और समर्थन दिया।
अराफात के आतिथ्य प्रेम से संबंधित किन्हीं दो घटनाओं का वर्णन कीजिए।
लेखक को 'लोटस' पत्रिका के तत्कालीन संपादक ने सदरमुकाम में भोज के लिए आमंत्रित किया था। लेखक और उसकी पत्नी जब वहाँ पहुँचे, वहाँ उनका स्वागत यास्सेर अराफ़ात ने किया। यास्सेर अराफ़ात लेखक और उनकी पत्नी को चाय की मेज़ तक ले गए। वहाँ उनके पास बैठकर वार्तालाप करने लगे। अराफ़ात ने स्वयं लेखक और उसकी पत्नी को फल छील कर खिलाए। शहद की चाय बनाकर पिलाई और उसकी उपयोगिता के विषय में बताया।
एक लेखक को गुसलखाना जाने की आवश्यकता अनुभव हुई। उन्होंने स्वयं ही जहाँ गुसलखाना होना चाहिए उसका अनुमान लगाया। वहाँ चले गए। जब गुसलखाने में से लेखक बाहर निकले, उस समय यास्सेर अराफ़ात तौलिया हाथ में लिए बाहर खड़े थे।
अराफ़ात ने ऐसा क्यों बोला कि 'वे आपके ही नहीं हमारे भी नेता हैं। उतने ही आदरणीय जितने आपके लिए।' इस कथन के आधार पर गांधी जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
लेखक और उसकी पत्नी यास्सेर अराफ़ात के मेहमान थे। यास्सेर अराफ़ात ट्यूनिस में रहकर फिलिस्तीन की अस्थायी सरकार के रूप में कार्य कर रहे थे। लेखक ने जब बातचीत के मध्य गांधी जी और देश के अन्य नेताओं का ज़िक्र किया तो अराफ़ात ने कहा कि वे केवल आपके ही नेता नहीं हैं, वे हमारे लिए भी आदरणीय नेता हैं। गांधी जी भारत के ही नहीं अपितु पूरे संसार के नेता हैं। गांधी जी के व्यक्तित्व, विचारों और नीतियों से पूरा संसार प्रभावित था। गांधी जी दिखने में जितने सरल और साधारण लगते थे उनके विचार और नीतियाँ उतनी प्रभावशाली थीं। उनका अहिंसात्मक व्यवहार दूसरों को अपना अत्याचारी व्यवहार छोड़ने के लिए मजबूर कर देता था। अहिंसा और सत्य के प्रयोग से उन्होंने सदियों से गुलाम भारत को परतंत्रता की जंज़ीरों से मुक्त करवाया। संसार में यह एकमात्र उदाहरण है कि गांधी जी के सत्याग्रह के समक्ष अंग्रेज़ों को झुकना पड़ा। गांधी जी के इस अस्त्र से पूरा संसार प्रभावित हुआ था। इसीलिए गांधी जी भारत में ही नहीं, अपितु सारे विश्व में पूज्यनीय हैं।